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Kahani Ke Sath - Sath

Vishwanath Tripathi
4.9/5 (22768 ratings)
Description:हिन्दी के मौज़ूदा वरिष्ठतम आस्वादवादी आलोचकों में से एक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी की कहानी पर यह अगली पुस्तक कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। त्रिपाठी जी पहले भी ‘कुछ कहानियाँ: कुछ विचार’ कहानी पर दे चुके हैं, जिसने विज्ञजनों का ध्यान आकर्षित किया था।त्रिपाठी जी का यह स्पष्ट मानना है कि ‘सामाजिक, ऐतिहासिक, आर्थिक स्थितियों का रचना पर प्रभाव पड़ता है। वे परिवर्तित सम्बन्धों की अभिव्यक्ति करती हैं।’ इस पुस्तक की लम्बी भूमिका तथा बाद के लेखों में कई महत्त्वपूर्ण लेखकों की कहानियों के उदाहरणों के माध्यम से वे अपनी इस बात की तस्दीक करते हैं।त्रिपाठी जी समय को, उस समय में रचे जाते साहित्य को, इन दोनों के बीच बराबर बदलते विविध प्रकार के सम्बन्धों को एकतानता किंवा समेकितता में देखते हैं। समय और साहित्य सम्बन्धी त्रिपाठी जी की स्मरण-शक्ति बहुत तीव्र है, फलतः हिन्दी की लम्बी कहानी-परम्परा उनके यहाँ हस्तामलकवत् रहती है। अपने मन्तव्य की पुष्टि में वे पुरानी से पुरानी और नयी से नयी कहानियों के, उनके पूर्ण विवरण सहित, हवाले इस तरह देते हैं, मानो अभी-अभी उन्हें पढ़कर आये हों! आलोचना के लिए ऐसी अचूक स्मरणीयता एक वरदान की तरह है। इस स्मरण की एक और विशेषता यह है कि यह नितान्त सटीक और सुसंगत होता है। विचार-प्रसंगानुसार कहानी की वस्तु का सन्तुलन!इस पुस्तक में भूमिका सहित कुल इक्कीस लेख हैं। भूमिका भी एक लेख ही है। इन लेखों का दायरा काफ़ी व्यापक है। भूमंडलीकरण, नवउपनिवेशवाद, नवउपभोक्तावाद, अपसंस्कृति इत्यादि प्रत्यय बार-बार यहाँ आते हैं। त्रिपाठी जी विश्वदृष्टि का सन्धान करते हुए हिन्दी कहानी की परम्परा को गहराई से जाँचते हैं और एक तरह से उसका पुनर्मूल्यांकन-सा करते हैं। समकालीन कहानीकारों की कहानियों की व्याख्या इसी सिलसिले में नये अर्थों और सन्दर्भों से लैस होती चलती है। भूमंडलीकरण के बरअक्स स्थानीयता किंवा देशजता की प्रतिरोधधर्मिता की प्रस्तावना इन लेखों की उल्लेखनीय विशेषता मानी जा सकती है।यह पुस्तक कहानी की समीक्षा में काव्यालोचना के प्रतिमानों को लागू करने की प्रविधि का पुनरुद्धार भी करती है। काव्य-प्रेमियों के उत्साहवर्द्धन हेतु यहाँ पर्याप्त सामग्रीWe have made it easy for you to find a PDF Ebooks without any digging. And by having access to our ebooks online or by storing it on your computer, you have convenient answers with Kahani Ke Sath - Sath. To get started finding Kahani Ke Sath - Sath, you are right to find our website which has a comprehensive collection of manuals listed.
Our library is the biggest of these that have literally hundreds of thousands of different products represented.
Pages
Format
PDF, EPUB & Kindle Edition
Publisher
Vani Prakashan
Release
2016
ISBN
9352293568

Kahani Ke Sath - Sath

Vishwanath Tripathi
4.4/5 (1290744 ratings)
Description: हिन्दी के मौज़ूदा वरिष्ठतम आस्वादवादी आलोचकों में से एक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी की कहानी पर यह अगली पुस्तक कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। त्रिपाठी जी पहले भी ‘कुछ कहानियाँ: कुछ विचार’ कहानी पर दे चुके हैं, जिसने विज्ञजनों का ध्यान आकर्षित किया था।त्रिपाठी जी का यह स्पष्ट मानना है कि ‘सामाजिक, ऐतिहासिक, आर्थिक स्थितियों का रचना पर प्रभाव पड़ता है। वे परिवर्तित सम्बन्धों की अभिव्यक्ति करती हैं।’ इस पुस्तक की लम्बी भूमिका तथा बाद के लेखों में कई महत्त्वपूर्ण लेखकों की कहानियों के उदाहरणों के माध्यम से वे अपनी इस बात की तस्दीक करते हैं।त्रिपाठी जी समय को, उस समय में रचे जाते साहित्य को, इन दोनों के बीच बराबर बदलते विविध प्रकार के सम्बन्धों को एकतानता किंवा समेकितता में देखते हैं। समय और साहित्य सम्बन्धी त्रिपाठी जी की स्मरण-शक्ति बहुत तीव्र है, फलतः हिन्दी की लम्बी कहानी-परम्परा उनके यहाँ हस्तामलकवत् रहती है। अपने मन्तव्य की पुष्टि में वे पुरानी से पुरानी और नयी से नयी कहानियों के, उनके पूर्ण विवरण सहित, हवाले इस तरह देते हैं, मानो अभी-अभी उन्हें पढ़कर आये हों! आलोचना के लिए ऐसी अचूक स्मरणीयता एक वरदान की तरह है। इस स्मरण की एक और विशेषता यह है कि यह नितान्त सटीक और सुसंगत होता है। विचार-प्रसंगानुसार कहानी की वस्तु का सन्तुलन!इस पुस्तक में भूमिका सहित कुल इक्कीस लेख हैं। भूमिका भी एक लेख ही है। इन लेखों का दायरा काफ़ी व्यापक है। भूमंडलीकरण, नवउपनिवेशवाद, नवउपभोक्तावाद, अपसंस्कृति इत्यादि प्रत्यय बार-बार यहाँ आते हैं। त्रिपाठी जी विश्वदृष्टि का सन्धान करते हुए हिन्दी कहानी की परम्परा को गहराई से जाँचते हैं और एक तरह से उसका पुनर्मूल्यांकन-सा करते हैं। समकालीन कहानीकारों की कहानियों की व्याख्या इसी सिलसिले में नये अर्थों और सन्दर्भों से लैस होती चलती है। भूमंडलीकरण के बरअक्स स्थानीयता किंवा देशजता की प्रतिरोधधर्मिता की प्रस्तावना इन लेखों की उल्लेखनीय विशेषता मानी जा सकती है।यह पुस्तक कहानी की समीक्षा में काव्यालोचना के प्रतिमानों को लागू करने की प्रविधि का पुनरुद्धार भी करती है। काव्य-प्रेमियों के उत्साहवर्द्धन हेतु यहाँ पर्याप्त सामग्रीWe have made it easy for you to find a PDF Ebooks without any digging. And by having access to our ebooks online or by storing it on your computer, you have convenient answers with Kahani Ke Sath - Sath. To get started finding Kahani Ke Sath - Sath, you are right to find our website which has a comprehensive collection of manuals listed.
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Pages
Format
PDF, EPUB & Kindle Edition
Publisher
Vani Prakashan
Release
2016
ISBN
9352293568
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