Description:शब्द-साधना की साँस-साँस का इतिहास रचनेवाले मिश्रजी की कविता विविध आयामी है। उसका न कोई एक कोण है और न कोई एक दिशा उसका गन्तव्य काल-सापेक्ष भी है और निरपेक्ष भी। वह सहज समाधि मुद्रा में मिट्टी से जुड़कर ऊर्ध्वगामिनी होने की कला में पारंगत है। वह सन्नाटे में निर्भयता का सन्देश देती है तो सतपुड़ा के घने जंगलों में धंसने की आकांक्षा भी जगाती है। वह स्वतंत्रता-संघर्षकाल में गाँधीजी के चरखे के साथ गुनगुनाती है तो आपातकाल में अंगारी चेतना बनकर 'त्रिकाल सन्ध्या' करती है। नर्मदा की कल-कल ध्वनि बनकर निरन्तर प्रवहमानता को सार्थक होने का सूत्र मानती है तो हिम-धवल आचरण की अपेक्षा भी रखती है। वह गीत बेचने को पाप मानती है तो ईमान बेचने वालों को भी नहीं छोड़ती है; जड़-व्यवस्थाओं को उलट-पुलट डालने की ऊर्जा का संचार करती है तो परम्परा और नवीनता में उचित-अनुचित की ग्रहणशीलता और त्याग का विवेक भी जगाती है। वह फूलों के मुस्कुराने तथा चिड़ियों के चहचहाने पर उल्लसित होती है तो पेड़ों के कटने और चिड़ियों के खाये जाने पर दुखी और चिन्तित भी होती है। वह मानव की अदम्य जिजीविषा की प्रशंसा करती है तो युद्धों की विनाशलीला की भर्त्सना भी करती है। कहने का अभिप्राय यह है कि भवानीप्रसाद मिश्र की कविता का अनुभव-संसार व्यापक है। एक ओर उसमें अपनी काव्य-परम्परा और भारतीय-चिन्तन का आलोक है तो दूसरी ओर पाश्चात्य साहित्य के अध्ययन-मनन से उपजा विवेक है। उसमें गाँधीजी के सत्य-अहिंसा का दर्शन है तो मार्क्सवाद का समाज-चिन्तन भी है।We have made it easy for you to find a PDF Ebooks without any digging. And by having access to our ebooks online or by storing it on your computer, you have convenient answers with Bhavaniprasad Mishra : Anubhav-Vaividhya Ke Apratim Sarjak. To get started finding Bhavaniprasad Mishra : Anubhav-Vaividhya Ke Apratim Sarjak, you are right to find our website which has a comprehensive collection of manuals listed. Our library is the biggest of these that have literally hundreds of thousands of different products represented.
Pages
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Format
PDF, EPUB & Kindle Edition
Publisher
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Release
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ISBN
9350726130
Bhavaniprasad Mishra : Anubhav-Vaividhya Ke Apratim Sarjak
Description: शब्द-साधना की साँस-साँस का इतिहास रचनेवाले मिश्रजी की कविता विविध आयामी है। उसका न कोई एक कोण है और न कोई एक दिशा उसका गन्तव्य काल-सापेक्ष भी है और निरपेक्ष भी। वह सहज समाधि मुद्रा में मिट्टी से जुड़कर ऊर्ध्वगामिनी होने की कला में पारंगत है। वह सन्नाटे में निर्भयता का सन्देश देती है तो सतपुड़ा के घने जंगलों में धंसने की आकांक्षा भी जगाती है। वह स्वतंत्रता-संघर्षकाल में गाँधीजी के चरखे के साथ गुनगुनाती है तो आपातकाल में अंगारी चेतना बनकर 'त्रिकाल सन्ध्या' करती है। नर्मदा की कल-कल ध्वनि बनकर निरन्तर प्रवहमानता को सार्थक होने का सूत्र मानती है तो हिम-धवल आचरण की अपेक्षा भी रखती है। वह गीत बेचने को पाप मानती है तो ईमान बेचने वालों को भी नहीं छोड़ती है; जड़-व्यवस्थाओं को उलट-पुलट डालने की ऊर्जा का संचार करती है तो परम्परा और नवीनता में उचित-अनुचित की ग्रहणशीलता और त्याग का विवेक भी जगाती है। वह फूलों के मुस्कुराने तथा चिड़ियों के चहचहाने पर उल्लसित होती है तो पेड़ों के कटने और चिड़ियों के खाये जाने पर दुखी और चिन्तित भी होती है। वह मानव की अदम्य जिजीविषा की प्रशंसा करती है तो युद्धों की विनाशलीला की भर्त्सना भी करती है। कहने का अभिप्राय यह है कि भवानीप्रसाद मिश्र की कविता का अनुभव-संसार व्यापक है। एक ओर उसमें अपनी काव्य-परम्परा और भारतीय-चिन्तन का आलोक है तो दूसरी ओर पाश्चात्य साहित्य के अध्ययन-मनन से उपजा विवेक है। उसमें गाँधीजी के सत्य-अहिंसा का दर्शन है तो मार्क्सवाद का समाज-चिन्तन भी है।We have made it easy for you to find a PDF Ebooks without any digging. And by having access to our ebooks online or by storing it on your computer, you have convenient answers with Bhavaniprasad Mishra : Anubhav-Vaividhya Ke Apratim Sarjak. To get started finding Bhavaniprasad Mishra : Anubhav-Vaividhya Ke Apratim Sarjak, you are right to find our website which has a comprehensive collection of manuals listed. Our library is the biggest of these that have literally hundreds of thousands of different products represented.